बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी थे ठाकुर प्रसाद सिंह

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उत्तरप्रदेश  ( प्रयागराज ) – हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0 प्र0, प्रयागराज के तत्वावधान में ‘ठाकुर प्रसाद सिंह शताब्दी वर्ष’ के अवसर पर दिनांक 05 मार्च 2024, मंगलवार, अपराह्न 3ः00 बजे गाँधी सभागार, हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0 प्र0, प्रयागराज में ‘ठाकुर प्रसाद सिंह : व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचासीन अतिथियों का सम्मान स्वागत शाल, पुष्पगुच्छ एवं प्रतीक चिह्न देकर एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि ‘ठाकुर प्रसाद सिंह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वे कुशल प्रषासक, पत्रकार, निबंधकार, गीतकार के साथ साथ एक उच्चकोटि के आलेचक भी थे। ठाकुर प्रसाद सिंह का जन्म वाराणसी में हुआ था ये वही बनारस है जिसमें साहित्यकारों की एक लम्बी ऋंखला है। जिन्होंने साहित्य जगत में नये प्रतिमान गढे, तुलसीदास, कबीरदास, मुन्षी प्रेमचंद, जयषंकर प्रसाद की कड़ी में ठाकुर प्रसाद सिंह आते है। ठाकुर प्रसाद सिंह को साहित्य में वो स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। आज एकेडेमी उनके जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर उन्हें याद करने के लिये यह संगोष्ठी आयोजित कर रही है।’ संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. कैलाश नारायण तिवारी पूर्व आचार्य हिन्दी विभाग दिल्ली विष्वविद्यालय दिल्ली ने कहा कि ‘ ठाकुर प्रसाद सिंह जी जितने कुशल प्रशासक रहे हैं कहीं उनसे ज्यादा एक बड़े साहित्यकार भी रहे हैं। उनकी रचनाएं, उनकी गीत समकालीन परिस्थितियों में आज भी प्रासंगिक हैं। प्रशासक केवल बुद्धि वाला ही समझा जाता है । परन्तु ठाकुर जी में हृदय पक्ष बुद्धि-पक्ष से ज्यादा और गहराई तक दिखायी देता है। उन्हें याद करना हमारे लिए गर्व का विषय है’। संगोष्ठी के सम्मानित वक्ता प्रो. जे.बी. पाण्डेय पूर्व आचार्य हिन्दी विभाग राँची विश्वविद्यालय ने कहा कि ‘ठाकुर प्रसाद सिंह हिन्दी नवगीत के यशस्वी हस्ताक्षर हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व बहुआयामी रहा है। भाव और कला दोनों पक्षों से उनका साहित्य वैभवपूर्ण रहा है। बोलना सबको आता है किसी की जुबान बोलती है किसी की नीयत बोलती है, किसी का समय बोलता है। परन्तु जीवन के अंत में ईष्वर के सामने तो बस व्यक्ति का कर्म बोलता है। ठाकुर प्रसाद सिंह का लेखन (कर्म) बोलता है। संगोष्ठी के सम्मानित वक्ता डॉ. उमेश प्रसाद सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार चन्दौली ने कहा कि ‘ठाकुर प्रसाद सिंह का व्यक्तित्व और उनकी रचनाधर्मिता समूची भारतीय जाति की पारंपरिक विरासत स्वाभिमान की प्रतिव्यापक है। उन्होंने भारतीय जाति की निष्ठा, उसके राग और उसके अथक प्रतिरोध को एक साथ अपनी रचनाओं में मुखर किया । कार्यक्रम में डॉ. सुनील विक्रम, आचार्य हिन्दी विभाग इलाहबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने कहा कि ‘ ठाकुर प्रसाद सिंह एक जिंदादिल एवं उत्सवधर्मी इंसान थे। वंशी और मादल’ के गीतों में लोक जीवन की सहायता।एवं सरसता दिखलाई देती है। आपने ’कुब्जा सुन्दरी’ ’सात घरों वाला गाँव’ उपन्यास लिखकर कथा- साहित्य में अपनी विशेष पहचान बनाई। इन दोनों उपन्यासो में आदिवासियों की जिन्दगी का मार्मिक आख्यान मिलता है। ठाकुर प्रसाद सिंह के निबन्धों में लोक जीवन की पीड़ा दिखलाई देती है। उनके जिंदादिल व्यक्तित्व की झलक उनके साहित्य में भी मिलती है। संगोष्ठी का संचलान डॉ. जी गणेशन मिश्र ने एंव कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय ने किया।

कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों में दुर्गेश कुमार सिंह, प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल, रामनरेश तिवारी ‘पिण्डीवासा’, शाम्भवी, आदि के साथ शहर के अन्य रचनाकार एवं शोध छात्र भी उपस्थित थे।

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