कोर वोटरों और पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से गिर रहा है भाजपा का ग्राफ !

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महाराष्ट्र ( मुंबई ) – कई दशकों तक मराठी, गुजराती, राजस्थानी, उत्तर भारतीय एवं सर्व धर्मीय मतदाताओं के बलबूते सत्ता सुख भोगने वाली कांग्रेस पार्टी चंद चाटुकारों तथा जयचंदों की दगाबाजी से सत्ता से बेदखल हो गई, लेकिन बदले हालात में एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी अपने कोर वोटरों को साधने में फिर से जुट गई है।

हेमराज शाह और अरूण गुजराती के बाद महाविकास आघाड़ी के पास फिलहाल कोई ऐसा चेहरा नहीं बचा है, जो फिलहाल एक बार फिर से उसके कोर वोटर गुजराती समाज को उसके पक्ष में ला सके। इसे गंभीरतापूर्वक लेते हुए कांग्रेस पार्टी ने गुजराती नेता पर फेंका है, और उन्हें मुंबई की किसी भी मनचाही सीट से उम्मीदवारी देने का प्रस्ताव दिया है। जिसमें दहिसर ,बोरीवली, मलाड, कांदिवली, मलबारहील, मुंबादेवी, वडाला, सायन-कोलीवाडा लालबाग , विलेपार्ले , सांताक्रुज , घाटकोपर, मुलुंड का समावेश है। हालांकि बता दें कि भाजपा के कोर वोटरों और पुराने कार्यकर्ताओं में पार्टी नेताओं के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी कोर वोटरों और पुराने कार्यकर्ताओं को भूलती जा रही है।

गौरतलब हो कि भाजपा में पार्टी इज डिफरेंट वाली बात नहीं रही, और दूसरी पार्टी के भ्रष्ट नेताओं को भाजपा चुनाव का टिकट दे रही है। यूपी में योगी जी को साइड लाईन कर देने से यूपी के लोगों ने नाराजगी व्यक्त की, और चुनाव में पार्टी के खिलाफ़ वोट किया। इसी तरह दूसरी पार्टियों के भ्रष्टाचारी नेताओं को भाजपा मे लेना (पार्टी इज डिफरेंट) जिसके चलते पार्टी का पतन शुरू हो गया है। कार्यकर्ता निष्क्रिय हो गया है। पार्टी कार्यकर्त्ता अब खुली जुबान से कहने लगे हैं कि जनसंघ के जमाने से ब्राह्मण, बनिया, व्यापारी, जैन, मारवाड़ी और अपर कास्ट पार्टी के कोर वोटर थे। उन्होंने पार्टी का तब साथ दिया था, जब इनके साथ कोई नहीं था। लेकिन पार्टी अब उनको निजी जागीर और गुलाम समझती है, तथा कार्यकर्ताओं को तुच्छ समझती है। उनके हितों के लिए पिछले दस साल में कोई कदम नहीं उठाये गए। पार्टी अपर कास्ट को भी अपनी जागीर समझती है, और उनके बारे में कुछ नहीं सोचती है।

खासकर मुंबई में गुजराती और जैन नेताओं की घोर उपेक्षा की जा रही है। मुंबई जैसे शहरों में जहां जैन और गुजराती वोटर्स की बस्ती है, वहां उनकी मांग है कि जैन और गुजराती समाज को भी अवसर दिया जाए, अन्यथा वे भाजपा को छोड़कर उन दलों की ओर खिसक सकते हैं, जहां उनके समाज को भी प्रतिनिधित्व मिले। नाराज कार्यकर्ता कहते हैं कि पार्टी की सरकारों ने महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार कम करने की दिशा में कुछ नहीं किया। आयकर के मामले में मध्यम वर्ग और व्यापारियों को कोई राहत नहीं दी गई। मंदिरों का चढ़ावा सरकार ले लेती है, और उस पैसे को दूसरे धर्म के लोगों के कल्याण पर खर्च करती है। वक्फ बोर्ड का पैसा केवल मुस्लिमों के लिए खर्च होता है। पार्टी के एमएलए और एमपी भ्रष्ट अधिकारियों से मिले हैं, तथा जनता को लूट रहे हैं। पिछले दस सालों में भ्रष्टाचार बढ़ा है, और किसी भी ऑफिस में बिना पैसा दिए कोई काम नहीं होता। शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई सुधार नहीं हुआ। सरकार दलितों का विश्वास अर्जित नहीं कर पाई। सरकार की योजनाएं उनके लिए बन रही हैं, जो कभी पार्टी के वोटर नहीं थे। पार्टी में स्थापना काल से जुड़े कार्यकर्ता पूरी तरह उपेक्षित हैं, और उन्हें पूरी तरह किनारे कर दिया गया है। पार्टी का काम निजी लोगों से कराया जा रहा है। अधिकारी कार्यकर्त्ता को कोई भाव नहीं देते हैं। ये सब बड़े नेताओं के इशारे पर हो रहा है। कार्यकर्ता ही पार्टी की रीढ़ होते हैं। उनके बल पर ही सत्ता मिलती है। संगठन की इस ‘रीढ़’ में दर्द हो रहा है। यानी कार्यकर्ता व्यथित हैं। उनको दर्द दे रही है प्रशासनिक अफसरों की उपेक्षा। पार्टी को सफलता के शीर्ष तक पहुंचाने वाले खुद को अपनी ही सरकार में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।  ज्यादातर अधिकारी उनकी नहीं सुन रहे हैं। किसी ऑफिस में उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। कार्यकर्ताओं की पीड़ा अब दिल में नहीं रही। वह जुबां पर तैरने लगी है। इससे पार्टी चिंतित है। उसे यह डर सताने लगा है कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा उनकी नाराजगी न बन जाए।  कार्यकर्ता अब वह खुलकर उच्च स्तर पर बातें पहुंचाने लगे हैं। उनको अपनी ही सरकार में विभागों की कार्यशैली में सुधार के लिए आंदोलन करना पड़ रहा है।

यही कारण है कि पुराने कार्यकर्त्ता अब घर बैठ गए हैं। कई जगहों पर तो जिले के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के द्वारा कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न भी किया जा रहा है। जिस तरह से पुराने कार्यकर्ता अफसरों व विभागों की मनमानी से नाराज हैं, उनकी सिसकियों की आवाज राजधानियों तक में सुनी जा रही है। कई जगहों पर प्रदेश संगठन में इस पर मंथन हो रहा है। बहुत संभव है कि कुछ अफसर इस नाराजगी के शिकार भी हो जाएं। दरअसल जल्द ही कई राज्यों में विधानसभा और निकाय चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर सत्ता दल चिंतित है। यदि पार्टी चुनाव को लेकर गंभीर है, तो उसे अपनी रीढ़ में हो रहे दर्द की दवा करने पर मंथन करना ही होगा। और इसके लिए योगीजी को पार्टी का चेहरा बनाना होगा, अन्यथा दर्द और जख्म को नासूर बनने से कोई रोक नहीं सकेगा। ऐसा लोगों का मानना है।

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