भाजपा नेता बाबूभाई भवानजी ने भिक्षु संघ के प्रति आभार जताया

Spread the love

महाराष्ट्र ( मुंबई )  वरिष्ठ भाजपा नेता और मुंबई के पूर्व उप महापौर बाबू भाई भवानजी ने आज मुंबई भिक्षु संघअध्यक्ष श्री विरांतना महाथेरा जी और अन्य भंते जी को और पदाधिकारियों से मिलकर उन्हें विधान सभा चुनाव में महायुति का समर्थन करने के लिए धन्यवाद दिया। बता दें कि इस बार मुंबई प्रदेश भिक्षु संघ ने खुलकर महायुति के पक्ष में खुलकर प्रचार किया था और सभी दलितों से महायुति *विजयी बनाने की अपील की थी।

इस अवसर पर भवानजी ने कहा कि दलित समाज हिंदू समुदाय का एक महत्वपूर्ण घटक है इसलिए दलित समुदाय को मजबूत करने का काम बाकी सभी घटकों को करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आर एस एस प्रमुख प. पु.मोहन भागवतजी कई वर्षों से कहते आ रहे हैं कि जिस तरह से पीएम मोदीजी दलितों आदिवासियों , पिछड़ों और गरीबों की स्थिति में सुधार के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं उसी तरह का प्रयास सभी को करना चाहिए।

भवानजी ने पीएम मोदी जी से अनुरोध किया है कि दलित समाज को सरकार और* *योजनाओं में उचित हिस्सा देकर इस समुदाय को सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए।

उन्होंने बीजेपी नेतृत्व से अपील की है कि हिंदू बहुल क्षेत्रों में दलित समुदाय के नेता को उम्मीदवार बनाना चाहिए और दलित समुदाय बहुल क्षेत्रों से हिंदू समुदाय के नेता को उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए।* *जिस से दूरियां का खत्मा होगा और हिंदुत्व मजबूत हो भारत मजबूत हो, जो हरेक हिन्दू की चाहत है, के डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी का सपने का भारत हो आगे भवानजी ने कहा कि हम सब एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे।

गौरतलब है हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू समाज के लिए जातिगत मतभेदों को दूर करने तथा दलितों और कमजोर वर्गों के साथ जुड़ने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने दावा किया कि एक “डीप स्टेट” देश को जाति और समुदाय के आधार पर बांटने के लिए काम कर रहा है, जिसमें कुछ राजनीतिक दल अपने “स्वार्थी हितों” के लिए इसमें शामिल हैं।

भागवत ने कहा कि विविधता की मौजूदा स्थिति ने संतों और देवताओं के बीच भी विभाजन पैदा कर दिया है। उन्होंने सवाल उठाया कि वाल्मीकि जयंती केवल वाल्मीकि बस्तियों में ही क्यों मनाई जानी चाहिए, उन्होंने जोर देकर कहा कि रामायण लिखने वाले वाल्मीकि ने पूरे हिंदू समुदाय के लिए एक विरासत बनाई। उन्होंने सभी हिंदुओं द्वारा वाल्मीकि जयंती और रविदास जयंती जैसे त्योहारों को सामूहिक रूप से मनाने की वकालत की, इस बात पर जोर देते हुए कि आरएसएस का उद्देश्य यही संदेश फैलाना है।

आरएसएस ( RSS  ) प्रमुख ने कहा कि सामाजिक सद्भाव और आपसी सद्भावना स्वस्थ समाज के लिए मूलभूत हैं। उन्होंने तर्क दिया कि केवल प्रतीकात्मक कार्यक्रम पर्याप्त नहीं हैं; समाज के विभिन्न वर्गों के व्यक्तियों और परिवारों के बीच सच्ची मित्रता आवश्यक है। उन्होंने कहा, “भाषाएँ विविध हो सकती हैं, संस्कृतियाँ विविध हो सकती हैं, भोजन विविध हो सकता है, लेकिन व्यक्तियों और परिवारों की यह मित्रता समाज में सद्भाव लाएगी।

भागवत ने मंदिरों और सामुदायिक सुविधाओं जैसे सार्वजनिक स्थानों में समावेशी वातावरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, समाज से आग्रह किया कि वे कमजोर वर्गों की परिस्थितियों से उत्पन्न होने वाली विशिष्ट आवश्यकताओं को समझें। उन्होंने वाल्मीकि समुदाय के सदस्यों के साथ एक बैठक का उदाहरण साझा किया, जहाँ राजपूत प्रतिनिधियों ने आपसी सहयोग की भावना को प्रदर्शित करते हुए दलित बच्चों को अपने स्कूल में निःशुल्क दाखिला देने की पेशकश की।

भागवत ने समकालीन राजनीतिक विमर्श को भी संबोधित किया, जिसमें उन्होंने “डीप स्टेट”, “वोकिज्म” और “कल्चरल मार्क्सवाद” जैसे शब्दों का उल्लेख सांस्कृतिक परंपराओं के लिए खतरे के रूप में किया । उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी अवधारणाएँ पहचान-आधारित समूहों के बीच विभाजन पैदा करने और पीड़ित होने की भावना को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यह विखंडन संघर्ष और अविश्वास के माहौल को जन्म देता है, जिससे कुछ गुटों के लिए नियंत्रण करना आसान हो जाता है।

उन्होनें सत्ता के लिए राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा की आलोचना करते हुए कहा कि जब स्वार्थ आपसी सद्भाव और राष्ट्रीय एकता पर हावी हो जाते हैं, तो इससे सामाजिक अखंडता कमज़ोर हो जाती है। उन्होंने भारत में मौजूदा राजनीतिक तनाव और अरब स्प्रिंग जैसी वैश्विक घटनाओं के बीच समानताएं बताईं और विशेष रूप से सीमावर्ती और आदिवासी क्षेत्रों में एकता को ख़तरे में डालने वाले अस्थिर करने वाले आख्यानों के प्रति आगाह किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *