भोगे हुए यथार्थ की परछाईं हैं बूढ़ी माँ की कहानियाँ – डॉ चन्द्रा

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उत्तर प्रदेश (प्रयागराज) – बूढ़ी माँ कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ भोगे हुए यथार्थ की परछाईं बनकर हिन्दी साहित्य में पाठकों को सुखद छांव का अहसास कराती हैं। बूढ़ी माँ को पढ़ने के बाद लगता है कि पाठक स्वयं किसी न किसी रूप में कहानियों के पात्र में विद्यमान है।

उपरोक्त विचार साहित्यांजलि प्रकाशन प्रयागराज द्वारा प्रकाशित डॉ राम लखन चौरसिया वागीश के कहानी संग्रह बूढ़ी माँ के लोकार्पण के बाद अपने वक्तव्य में कानपुर से पधारे समारोह के विशिष्ट वक्ता डॉ सुभाष चंद्रा ने रखा। उन्होंने कहा कि बहुत अल्प समय में ही साहित्यांजलि प्रकाशन प्रयागराज ने उत्कृष्ट साहित्य की श्रृंखला बना कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

लोकार्पण समारोह बंद रोड स्थित वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती उमा सहाय के आवास पर मुख्य अतिथि अजामिल तथा अध्यक्षता जया मोहन के सानिध्य में सम्पन्न हुआ। इसका सफल संचालन रंजन पाण्डेय द्वारा किया गया| मंच पर डॉ राम लखन चौरसिया वागीश ( लेखक ) डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय ( प्रकाशक ) भी उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि श्री अजामिल जी ने कहा कि वागीश का रचनात्मक धरातल बहुत समृद्ध और सशक्त है। जया मोहन ने अपने उद्बोधन में कहा कि उच्चकोटि की गुणवत्ता के लिए साहित्यांजलि प्रकाशन प्रयागराज ने अपनी अलग पहचान बनाने में सफलता पायी है। उमा सहाय जी ने भी अपनी शुभकामनायें दी। केशव प्रकाश सक्सेना , मधुकर मिश्रा , रीता मिश्रा , नीतू सहाय , विश्व ज्योति सहाय सहित अनेक साहित्य प्रेमी समारोह में उपस्थित रहे। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए डॉ उपाध्याय ने आगामी आयोजित होने वाले कार्यक्रम में सभी को पुनः सादर आमंत्रित किया।

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